रक्तदान-महादान
रक्तदान जीवनदान है। हमारे द्वारा किया गया रक्तदान कई जिंदगियों को बचाता है। इस बात का अहसास हमें तब होता है जब हमारा कोई अपना खून के लिए जिंदगी और मौत के बीच जूझता है। उस वक्त हम नींद से जागते हैं और उसे बचाने के लिए खून के इंतजाम की जद्दोजहद करते हैं।
अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हममें से कोई भी हो सकता है। आज हम सभी शिक्षित व सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं तो क्यों नहीं हम रक्तदान के पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें और लोगों को जीवनदान दें।
इसमें कोई दो राय नहीं कि रक्त का कोई दूसरा विकल्प नहीं है यानी यह किसी फैक्ट्री में नहीं बनता और ना ही इंसान को जानवर का खून दिया जा सकता है. यानी रक्त बहुत ज्यादा कीमती है. रक्त की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, परंतु जागरुकता ना होने की वजह से लोग देने से हिचकिचाते हैं.
ज्यादातर लोग सोचते हैं- इतने लोग रक्त दान कर रहे हैं तो मुझे क्या जरुरत पड़ी है... या भई, मेरा ब्लड ग्रुप तो बहुत आम है, ये तो किसी का भी होगा, तो मैं ही क्यों दान करुँ. अब उनकी यह सोच सही इसलिए नहीं क्योंकि कि आम ब्लड होने के कारण उस समूह के रोगी भी तो ज्यादा आते होगें. यानि उस ग्रुप की मांग भी उतनी ही ज्यादा होगी. या फिर कई लोग यह सोचते है कि भाई, मेरा ग्रुप तो रेयर है, यानी खास है तो मैं तब ही रक्त दूंगा जब जरुरत होगी. ऐसे में तो यही बात सामने आती है कि आपका रक्त चाहे आम हो या खास. हर तीन महीने यानी 90 दिन बाद दान देना ही चाहिए. हमारा शरीर 24 घंटे के भीतर रक्त ही पूर्ति कर लेता है जबकि सभी तरह की कोशिकाओ के परिपक्व होने मे 5 सप्ताह तक लग जाते हैं. अब बात आती है कि जब जरुरत होगी तभी देंगे, सही नही है. मरीज कब तक आपका इंतजार करेगा. हो सकता है कि आप तक खबर ही ना पहुँच पाए या आप ही समय पर ना पहुँच पाए तो आप दोषी किसे मानोगे. दूसरी बात यह भी है कि बेशक आप लगातार रक्त देते हो पर जब भी आपने रक्त दान करना होता है आपका सारा चैकअप दोबारा होता है उसमे कई बार समय भी लग जाता है. इस इंतजार में तो ना ही रहें कि जब जरुरत होगी तभी ही देने जाएगें.
देशभर में रक्तदान हेतु नाको, रेडक्रास जैसी कई संस्थाएँ लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही है परंतु इनके प्रयास तभी सार्थक होंगे, जब हम स्वयं रक्तदान करने के लिए आगे आएँगे और अपने मित्रों व रिश्तेदारों को भी इस हेतु आगे आने के लिए प्रेरित करेंगे।
वैसे स्वैच्छिक रक्त दान यानी जो रक्तदान अपनी मर्जी से किया जाए उसी को सुरक्षित माना जाता है क्योकि इन मे रक्त संचरण जनित सक्रंमण ना के बराबर होता है. यह भी बात आती है कि रक्तदान किसलिए करें तो स्वस्थ लोगो का नैतिक फर्ज है कि बिना किसी स्वार्थ के मानव की भलाई करें. अगर हमारे रक्त से किसी की जान बच सकती है तो हमे गर्व होना चाहिए कि हमने नेक काम किया है और अब तो विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली कि एक जने का दिया गया खून तीन जिंदगियां भी बचा सकता है .तो क्या सोच रहे है आप......
अगर आप 18 से 60 साल के बीच में हैं और आपका हीमोग्लोबिन 12.5 है और आपका वजन 45 किलो से ज्यादा है तो आप निकट के ब्लड बैंक मे जाकर और जानकारी लेकर रक्तदान कर सकते हैं.
क्या आपको पता है कि देश मे हर साल लगभग 80 लाख यूनिट रक्त की जरुरत होती है, जबकि 50 यूनिट ही मिल पाता है. ये बहुत कम है. लाखों मरीज रक्त के इंतजार में दम तोड़ देते हैं. 'रक्तदान के बारे में फैले मिथक के कारण लोग रक्तदान करने से बचते हैं। इनमें सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि रक्तदान करने से कमजोरी आती है, जबकि ऐसा कतई नहीं है। रक्तदान के जरिए जितना खून शरीर से निकलता है उसकी भरपाई शरीर में मात्र तीन ही दिन में हो जाती है। रक्तदान से शरीर को नुकसान की बजाय फायदा ही होता है। इससे शरीर में रक्त कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैं और लाल रक्त कोशिकाओं का पुर्ननिर्माण होता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक रहती है।’’
हमारे देश में समय पर रक्त नहीं मिलने के कारण हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है। अगर सभी लोग साल में एक बार भी रक्तदान करें तो बहुत सी अनमोल जिंदगियां बचाई जा सकती हैं
कौन कर सकता है रक्तदान :
* कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 68 वर्ष के बीच हो।
* जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो।
* जिसके रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रतिशत 12 प्रतिशत से अधिक हो।
ये नहीं करें रक्तदान :
* महावारी के दौर से गुजर रही महिला।
* बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिला।
सच, जिस काम मे किसी का भला होता हो किसी की जान बचती हो उस काम से कदम पीछे नही हटाना चाहिए. हमें तो रक्तदान के लिए किसी ने कहा ही नही इसलिए हमने किया भी नहीं. ऐसे लोगों के लिए क्या जवाब हो सकता है- आप बेहतर जान सकते हैं. यहां पर एक बात कहना उचित होगा कि " जब जागो तभी सवेरा".
सही मायनों मे " रक्तदान करके देखे अच्छा लगता है. "
अनायास दुर्घटना या बीमारी का शिकार हममें से कोई भी हो सकता है। आज हम सभी शिक्षित व सभ्य समाज के नागरिक है, जो केवल अपनी नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए भी सोचते हैं तो क्यों नहीं हम रक्तदान के पुनीत कार्य में अपना सहयोग प्रदान करें और लोगों को जीवनदान दें।
इसमें कोई दो राय नहीं कि रक्त का कोई दूसरा विकल्प नहीं है यानी यह किसी फैक्ट्री में नहीं बनता और ना ही इंसान को जानवर का खून दिया जा सकता है. यानी रक्त बहुत ज्यादा कीमती है. रक्त की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, परंतु जागरुकता ना होने की वजह से लोग देने से हिचकिचाते हैं.
ज्यादातर लोग सोचते हैं- इतने लोग रक्त दान कर रहे हैं तो मुझे क्या जरुरत पड़ी है... या भई, मेरा ब्लड ग्रुप तो बहुत आम है, ये तो किसी का भी होगा, तो मैं ही क्यों दान करुँ. अब उनकी यह सोच सही इसलिए नहीं क्योंकि कि आम ब्लड होने के कारण उस समूह के रोगी भी तो ज्यादा आते होगें. यानि उस ग्रुप की मांग भी उतनी ही ज्यादा होगी. या फिर कई लोग यह सोचते है कि भाई, मेरा ग्रुप तो रेयर है, यानी खास है तो मैं तब ही रक्त दूंगा जब जरुरत होगी. ऐसे में तो यही बात सामने आती है कि आपका रक्त चाहे आम हो या खास. हर तीन महीने यानी 90 दिन बाद दान देना ही चाहिए. हमारा शरीर 24 घंटे के भीतर रक्त ही पूर्ति कर लेता है जबकि सभी तरह की कोशिकाओ के परिपक्व होने मे 5 सप्ताह तक लग जाते हैं. अब बात आती है कि जब जरुरत होगी तभी देंगे, सही नही है. मरीज कब तक आपका इंतजार करेगा. हो सकता है कि आप तक खबर ही ना पहुँच पाए या आप ही समय पर ना पहुँच पाए तो आप दोषी किसे मानोगे. दूसरी बात यह भी है कि बेशक आप लगातार रक्त देते हो पर जब भी आपने रक्त दान करना होता है आपका सारा चैकअप दोबारा होता है उसमे कई बार समय भी लग जाता है. इस इंतजार में तो ना ही रहें कि जब जरुरत होगी तभी ही देने जाएगें.
देशभर में रक्तदान हेतु नाको, रेडक्रास जैसी कई संस्थाएँ लोगों में रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास कर रही है परंतु इनके प्रयास तभी सार्थक होंगे, जब हम स्वयं रक्तदान करने के लिए आगे आएँगे और अपने मित्रों व रिश्तेदारों को भी इस हेतु आगे आने के लिए प्रेरित करेंगे।
वैसे स्वैच्छिक रक्त दान यानी जो रक्तदान अपनी मर्जी से किया जाए उसी को सुरक्षित माना जाता है क्योकि इन मे रक्त संचरण जनित सक्रंमण ना के बराबर होता है. यह भी बात आती है कि रक्तदान किसलिए करें तो स्वस्थ लोगो का नैतिक फर्ज है कि बिना किसी स्वार्थ के मानव की भलाई करें. अगर हमारे रक्त से किसी की जान बच सकती है तो हमे गर्व होना चाहिए कि हमने नेक काम किया है और अब तो विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली कि एक जने का दिया गया खून तीन जिंदगियां भी बचा सकता है .तो क्या सोच रहे है आप......
अगर आप 18 से 60 साल के बीच में हैं और आपका हीमोग्लोबिन 12.5 है और आपका वजन 45 किलो से ज्यादा है तो आप निकट के ब्लड बैंक मे जाकर और जानकारी लेकर रक्तदान कर सकते हैं.
क्या आपको पता है कि देश मे हर साल लगभग 80 लाख यूनिट रक्त की जरुरत होती है, जबकि 50 यूनिट ही मिल पाता है. ये बहुत कम है. लाखों मरीज रक्त के इंतजार में दम तोड़ देते हैं. 'रक्तदान के बारे में फैले मिथक के कारण लोग रक्तदान करने से बचते हैं। इनमें सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि रक्तदान करने से कमजोरी आती है, जबकि ऐसा कतई नहीं है। रक्तदान के जरिए जितना खून शरीर से निकलता है उसकी भरपाई शरीर में मात्र तीन ही दिन में हो जाती है। रक्तदान से शरीर को नुकसान की बजाय फायदा ही होता है। इससे शरीर में रक्त कोशिकाएं तेजी से बनने लगती हैं और लाल रक्त कोशिकाओं का पुर्ननिर्माण होता है, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक रहती है।’’
हमारे देश में समय पर रक्त नहीं मिलने के कारण हर साल हजारों लोगों की मौत हो जाती है। अगर सभी लोग साल में एक बार भी रक्तदान करें तो बहुत सी अनमोल जिंदगियां बचाई जा सकती हैं
कौन कर सकता है रक्तदान :
* कोई भी स्वस्थ व्यक्ति जिसकी आयु 18 से 68 वर्ष के बीच हो।
* जिसका वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो।
* जिसके रक्त में हिमोग्लोबिन का प्रतिशत 12 प्रतिशत से अधिक हो।
ये नहीं करें रक्तदान :
* महावारी के दौर से गुजर रही महिला।
* बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिला।
सच, जिस काम मे किसी का भला होता हो किसी की जान बचती हो उस काम से कदम पीछे नही हटाना चाहिए. हमें तो रक्तदान के लिए किसी ने कहा ही नही इसलिए हमने किया भी नहीं. ऐसे लोगों के लिए क्या जवाब हो सकता है- आप बेहतर जान सकते हैं. यहां पर एक बात कहना उचित होगा कि " जब जागो तभी सवेरा".
सही मायनों मे " रक्तदान करके देखे अच्छा लगता है. "
Copyright, 2012. Sarvodaya Manav Seva Charitable Trust